जिस शख़्स के ख़ूबसूरत-जवान बेटे की छह दिन पहले बीच सड़क पर गला रेतकर हत्या कर दी गई हो, अगर वो आपको हंसता हुआ मिले तो आंखों पर यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है.
दिमाग़ सवाल करने लगता है, क्या सब कुछ ठीक है? नहीं... सब ठीक नहीं है. एक परिवार बिखर गया है.
अंकित के पिता कहते हैं, "जब बेटे के दोस्त चले जाते हैं तो टीवी खोलकर बैठ जाता हूं. कभी-कभी अचानक से मेरे ही बेटे की हत्या से जुड़ी ख़बरें आ जाती हैं और सब कुछ आंखों के सामने नाच उठता है."
कुछ टीवी वाले इसे धर्म से जोड़ने की कोशिश करते हैं और ये मैंने कई बार बोलै है कि इसे साम्प्रादयिक रंग देने कि कोशिश न करें
दिमाग़ सवाल करने लगता है, क्या सब कुछ ठीक है? नहीं... सब ठीक नहीं है. एक परिवार बिखर गया है.
अंकित के पिता कहते हैं, "जब बेटे के दोस्त चले जाते हैं तो टीवी खोलकर बैठ जाता हूं. कभी-कभी अचानक से मेरे ही बेटे की हत्या से जुड़ी ख़बरें आ जाती हैं और सब कुछ आंखों के सामने नाच उठता है."
कुछ टीवी वाले इसे धर्म से जोड़ने की कोशिश करते हैं और ये मैंने कई बार बोलै है कि इसे साम्प्रादयिक रंग देने कि कोशिश न करें
अंकित सक्सेना की ग़मी में आए रिश्तेदार लौट चुके हैं. उनकी मां इलाज कराकर अस्पताल से लौट आई हैं और पिता ने ख़ुद को पत्थर सा बना लिया है.
मगर शायद उस ग़म से ख़ुद को दूर करने के लिए वो अंकित के दोस्तों के साथ घुले-मिले बैठे दिखते हैं.
अंकित के पिता यशपाल सक्सेना कहते हैं, "सब कह रहे हैं मैं तो रो ही नहीं रहा. क्या जब रोऊंगा तभी मानोगे, मेरा सब लुट गया. मेरी आंखों के आगे मेरे बेटे को मार दिया गया ..रो दूंगा तो क्या वो आ जाएगा?"
"कई बार हंसी के पीछे जो दर्द होता है, दिखता नहीं है. वो सिर्फ़ बेटा नहीं था दोस्त था मेरा. उसके साथ सब चला गया."
ये हत्या आने वाले दिनों के लिए एक अहम सबक है समाज के सभी वर्ग के लिए|
क्या ये हत्या आखिरी है? क्या ये हत्या से किसी समाज पर असर पड़ सकता है कि मोहब्बत करने वालो का कोई धर्म नहीं होता कोई जात नहीं होती| क्युकी अगर धर्म होता तो फिर वो हत्या न होती और अगर हत्या हुई है तो फिर वहां धर्म ही नहीं था|
ये हमारे समाज के ऊपर एक नासूर है जो हर थोड़े अंतराल पर कही न कही देखने को मिल जाता है.
कभी हरियाणा में खाप पंचायत में किसी कि ह्त्या कर दी जाती है तो किसी की हत्या हॉनर के नाम पर कर दी जाती है और आज हॉनर किलिंग एक फैशन बनता जा रहा है|
क्या वो लैला मजनू और हीर रांझा जैसे कहानिया अभी भी बन रहे हैं? क्या ये समाज के पिछड़ेपन की कहानी नहीं है?
देश में बदलाव से पहले अपने सोच और अपने समाज में बदलाव की ज़रूरत है और ये सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि आज के नौजवानो के सोच और उनके भावनाओ की कदर हो उनके साथ और उनको आगे बढ़ने और समाज में नयी सोच के प्रवाह का मौका दिया जाए.
अब ये वक़्त आ गया है कि समाज के लोग इसे लाज़मी करें कि मोहब्बत पर पाबन्दी न हो और सभी को आज़ादी हो कि वो जिससे चाहे प्यार करें शादी करें और परिवार इस बात पर सोचे कि वो अपने बच्चो को कैसी परवरिश दे रहे हैं वरना समाज में हमेशा किसी न किसी की हत्या धर्म जात और हॉनर के नाम पर होती रहेगी और ये समाज के हाथो में ही है कि इसे कैसे निपटना है क्युकी कानून सिर्फ अपराध पर रोक लगा सकता है किसी को किसी से मोहब्बत करने से नहीं जिसपर सबका हक़ है |

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