झारखण्ड में दिल को झिंझोड़ देनी वाली घटना घटी है जिसे एक गैर सरकारी संस्था ने खुलासा किया-
ज्ञात हो कि पिछले सप्ताह झारखण्ड में एक गरीब बच्ची की मौत भात खाने की जिद के साथ हो गयी और ये घटना पुरे देश को अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया और हमें ये सवाल पर सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हम वाकई में डिजिटल इंडिया जैसे शाब्दिक भ्रम के चक्कर में पड़ कर देश की गरीबी के साथ भद्दा मज़ाक कर रहे हैं?
एक गरीब बच्ची संतोषी को सिर्फ इसलिए जान गंवानी पड़ी क्युकी वो ग़रीब थी और ना उसके पास आधार कार्ड था जिसकी मांग वो सरकार कर रही थी जो तभी चावल देती जब तक वो गरीब डिजिटल नहीं हो जाती
मेरे ख्याल से इस बात को सोचने की ज़रूरत है कि क्या हम अभी इस हाल में हैं जहाँ देश की आधी से ज्यादा आबादी दो वक़्त की रोटी के लिए दिन रात मेहनत करती है, जहाँ की शिक्षा की हालत विश्व में कहीं नहीं टिकती
भुखमरी के मामले में हम सबसे आगे हैं
लोगो को उलझाने के लिए शाब्दिक मायने और ज़मीनी हकीक़त से परे डिजिटल इंडिया, Make in India बनाने की बात हो रही है
देश का विकास देश के माध्यम वर्गीय लोगो के विकास से ही संभव है अगर इसे करने में सरकार फेल है तो मुझे नहीं लगता अगले पच्चास साल में भी भारत एक डिजिटल देश बन सकता है|
क्या इस ज़माने में भी किसी को भूखे मरने का हक होना चाहिए? क्या इस ज़माने में भी किसी का हक शिक्षा को न पाना होना चाहिए
इस बात पर गौर करने की ज़रूरत है कि देश की सरकार के हर कदम ऐसे ही गरीबो के लिए उठने चाहिए न की अरबो रूपये के मालिक उद्योगपतियों के लिए
जैसा कि हम सब देख रहे हैं की पिछले 3 सालो में भारत की सरकार लगातार कोशिश कर रही है कि अम्बानी अदानी जैसे लोगो की सेवा करे और दूसरी तरफ भारत की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही है
GST से माध्यम वर्ग के लोग काफी परेशां हुए नोटबंदी से नजाने कितने गरीबो के ही मौत हुए लेकिन इसका कोई फायदा देश को देखने को नहीं मिला नाही कालाधन जमा करने वाला कोई आज तक जेल गया, सिर्फ लोगो को जान गंवानी पड़ी
हमें ज़रूरत है की इस पर बड़े ही गंभीरता से सोचा जाए की क्या देश की सुरक्षा से लेकर गरीबो की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी जिसे दी गयी है क्या वो उस ज़िम्मेदारी को निभा रहा है ??
रफिक अहमद
ज्ञात हो कि पिछले सप्ताह झारखण्ड में एक गरीब बच्ची की मौत भात खाने की जिद के साथ हो गयी और ये घटना पुरे देश को अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया और हमें ये सवाल पर सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हम वाकई में डिजिटल इंडिया जैसे शाब्दिक भ्रम के चक्कर में पड़ कर देश की गरीबी के साथ भद्दा मज़ाक कर रहे हैं?
एक गरीब बच्ची संतोषी को सिर्फ इसलिए जान गंवानी पड़ी क्युकी वो ग़रीब थी और ना उसके पास आधार कार्ड था जिसकी मांग वो सरकार कर रही थी जो तभी चावल देती जब तक वो गरीब डिजिटल नहीं हो जाती
मेरे ख्याल से इस बात को सोचने की ज़रूरत है कि क्या हम अभी इस हाल में हैं जहाँ देश की आधी से ज्यादा आबादी दो वक़्त की रोटी के लिए दिन रात मेहनत करती है, जहाँ की शिक्षा की हालत विश्व में कहीं नहीं टिकती
भुखमरी के मामले में हम सबसे आगे हैं
लोगो को उलझाने के लिए शाब्दिक मायने और ज़मीनी हकीक़त से परे डिजिटल इंडिया, Make in India बनाने की बात हो रही है
देश का विकास देश के माध्यम वर्गीय लोगो के विकास से ही संभव है अगर इसे करने में सरकार फेल है तो मुझे नहीं लगता अगले पच्चास साल में भी भारत एक डिजिटल देश बन सकता है|
क्या इस ज़माने में भी किसी को भूखे मरने का हक होना चाहिए? क्या इस ज़माने में भी किसी का हक शिक्षा को न पाना होना चाहिए
इस बात पर गौर करने की ज़रूरत है कि देश की सरकार के हर कदम ऐसे ही गरीबो के लिए उठने चाहिए न की अरबो रूपये के मालिक उद्योगपतियों के लिए
जैसा कि हम सब देख रहे हैं की पिछले 3 सालो में भारत की सरकार लगातार कोशिश कर रही है कि अम्बानी अदानी जैसे लोगो की सेवा करे और दूसरी तरफ भारत की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही है
GST से माध्यम वर्ग के लोग काफी परेशां हुए नोटबंदी से नजाने कितने गरीबो के ही मौत हुए लेकिन इसका कोई फायदा देश को देखने को नहीं मिला नाही कालाधन जमा करने वाला कोई आज तक जेल गया, सिर्फ लोगो को जान गंवानी पड़ी
हमें ज़रूरत है की इस पर बड़े ही गंभीरता से सोचा जाए की क्या देश की सुरक्षा से लेकर गरीबो की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी जिसे दी गयी है क्या वो उस ज़िम्मेदारी को निभा रहा है ??
रफिक अहमद

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