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Sunday, October 22, 2017

क्या अब बाकी रह गया है शर्मसार होकर मर जाने के लिए ??

क्या अब बाकी रह गया है शर्मसार होकर मर जाने के लिए ?? 
कुछ दिन पहले एक खबर थीं ,कि झारखंड में एक 11 साल की बच्ची भूख से मर गयी ,अब खबर है कि गांव वालों ने उसकी माँ को बदनामी के डर से गांव से बाहर निकाल दिया 
झारखण्ड की उस बच्ची के बारे में तो याद होगा या फिर भूल गए?? जी वही जो भात खाने के लिए घर में चावल भी नहीं था और सरकार ने उससे पहले कहा कि पहले "डिजिटल" बन कर आओ यानि आधार कार्ड दिखाओ फिर चावल मिलेगा|
वहाँ उस दरिन्दे को तड़पती उस माँ की आँखें नहीं दिखी जो सूजी थी
आज उस गावं के बेगैरत लोगो को उस माँ की तड़प नहीं दिख रही है जिसे वो अपनी बेईज्ज़ती समझ रहे हैं दर असल चुल्लू भर पानी में तो उन गाव वालो को डूब कर मर जाना चाहिए जिसके रहते हुए एक घर की गरीब की बेटी मारी गयी वो भी खाने के लिए
उस गावं की क्या इज्ज़त जिसने उस गरीबी को नहीं देखा और माँ को तड़पते नहीं देखा उस बच्ची को मरते नहीं देखा???


शर्म आती है हमें ये कहते हुए कि हम एक विकासशील देश के नागरिक हैं जो चाँद तक तो पहुँच गया लेकिन एक गरीब के घर तक नहीं पहुँच सके.
आखिर किस बात की होड़ और किस बात प्रतियोगिता जहाँ एक देश की भविष्य खाने बगैर मर जाए?
बधाई हो ,हम बच्चों की लाशें लिए और उनकी माँओं की सिसकियाँ लिए 2018 में प्रवेश करने ही वाले हैं !! गोरखपुर तो याद ही होगा जहाँ पांच से से ज्यादा बच्चे काल के गाल में समा गये और हमारे प्रधान सेवक और योगी जी को हिन्दू मुस्लिम करने से फुर्सत नहीं मिल रही है 

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