#महिला_पत्रकार
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क्या आज भी इस दौर मे महिला पत्रकारों के साथ भेदभाव होता है? या उन्हें मौक़ा नहीं दिया जाता?
सहाफ़त में महिला को आगे नहीं आने देने की क्या वजह है?
क्या उनके #क़ाबिलियत पर शक है ?? अगर शक है तो किसे है??? मर्द जात को???? या उन HR को जो मीडिया हाउस के लिए पत्रकारों की इंटर्व्यू लेते हैं??
ऐसा तो है नही कि महिला पत्रकारों की कमी है देश में तो फिर दिक़्क़त क्या है??
क्या वो फ़ील्ड कवर नहीं कर सकती? क्या वो वक़्त पर रिपोर्टिंग नहीं कर सकती? या फिर उनके इमनदार जज़्बाती सहाफ़त को दिखाना मुश्किल होगा???
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क्या आज भी इस दौर मे महिला पत्रकारों के साथ भेदभाव होता है? या उन्हें मौक़ा नहीं दिया जाता?
सहाफ़त में महिला को आगे नहीं आने देने की क्या वजह है?
क्या उनके #क़ाबिलियत पर शक है ?? अगर शक है तो किसे है??? मर्द जात को???? या उन HR को जो मीडिया हाउस के लिए पत्रकारों की इंटर्व्यू लेते हैं??
ऐसा तो है नही कि महिला पत्रकारों की कमी है देश में तो फिर दिक़्क़त क्या है??
क्या वो फ़ील्ड कवर नहीं कर सकती? क्या वो वक़्त पर रिपोर्टिंग नहीं कर सकती? या फिर उनके इमनदार जज़्बाती सहाफ़त को दिखाना मुश्किल होगा???
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आज मीडिया हाउस में जितने पत्रकार हैं अगर उनके साथ ही साथ महिला पत्रकारों को मौक़ा दें तो समाज के बहुत सारे मुश्किलात को #दुगुने रफ़्तार से लड़ ख़त्म किया जा सकता है। ख़ासकर उन मुद्दों पर जो महिलाओं से जुड़ी होती हैं जैसे घरेलू उत्पीड़न, #बलात्कार, तलाक़, महिलाओं ऑफ़िस में बदतमीज़ी, ग़रीब घरेलू महिलाओं की समस्या इत्यादि
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आज देश के कई ऐसे मीडिया हाउस हैं जहाँ महिलाओं को सिर्फ़ #लिखित रिपोर्ट पढ़वाने को रखा जाता है।
उन्हें रिपोर्ट मौक़ा पर पहुँच या फिर किसी मुद्दों पर उनके रीसर्च को मौक़ा नहीं दिया जाता है।
मेरे इस सवाल का जवाब शायद लोग ये दे कि #महिला_सुरक्षा को देखते हुए उन्हें ऐसे मौके नहीं दिए जाते
तो मुझे ये बताइए महिलाओ के साथ किस ज़माने में ज़्यादती नहीं हुई?? कब कब उन्हें तंग नहीं किया गया? जब सति प्रथा से लड़ सकती हैं तो सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए इस जोखिम को भी उठा सकती हैं शर्त है कि रिसर्च और सच दिखाने की ताकत हो
या ये पैसे लेकर काम करने वाले मीडिया हाउस ख़ुद महिलाओं के साथ भेदभाव करती है?????
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Rafique Ahmad
आज देश के कई ऐसे मीडिया हाउस हैं जहाँ महिलाओं को सिर्फ़ #लिखित रिपोर्ट पढ़वाने को रखा जाता है।
उन्हें रिपोर्ट मौक़ा पर पहुँच या फिर किसी मुद्दों पर उनके रीसर्च को मौक़ा नहीं दिया जाता है।
मेरे इस सवाल का जवाब शायद लोग ये दे कि #महिला_सुरक्षा को देखते हुए उन्हें ऐसे मौके नहीं दिए जाते
तो मुझे ये बताइए महिलाओ के साथ किस ज़माने में ज़्यादती नहीं हुई?? कब कब उन्हें तंग नहीं किया गया? जब सति प्रथा से लड़ सकती हैं तो सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए इस जोखिम को भी उठा सकती हैं शर्त है कि रिसर्च और सच दिखाने की ताकत हो
या ये पैसे लेकर काम करने वाले मीडिया हाउस ख़ुद महिलाओं के साथ भेदभाव करती है?????
Rafique Ahmad

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