क्या अब देश में सिर्फ हिन्दू मुस्लिम सिख और ईसाई के नाम पर ही चुनाव होंगे?
जैसे जैसे इलेक्शन का दिन नज़दीक आ रहा है वैसे वैसे साम्प्रदायिकता का ज़हर उगलने वाले देश के दुश्मन अपने बयानों में आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
क्या अब देश में सिर्फ हिन्दू मुस्लिम सिख और ईसाई के नाम पर ही चुनाव होंगे?
क्या हमारे सामने दूसरे मुद्दे नहीं हैं जो देश के लिए ज़रूरी हैं??
बेरोज़गारी, गरीबी, भुखमरी, सामाजिक सुरक्षा, महिला सुरक्षा क्या ये सिर्फ अब देख कर चुप रहने वाले मुद्दे हैं?
ऐसे नेताओ को देखते ही भगाये
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