झारखण्ड- मिनहाज "हत्या" मामला
(Note:- कृपया सोशल मीडिया पर मनगढंत पोस्ट न डालें वरना इंसाफ में देरी हो सकती है )
झारखण्ड:- मामला 3 अक्टूबर 2016, झारखण्ड के ग्राम दिघारी, पोस्ट- चैनपुर, थाना नारायणपुर, जिला- जामताड़ा की है
जब कुछ लोग एक विशिष्ट गिरोह के रात को मिन्हाज को पिट पिट कर मार डालते हैं, और अगर पिता के आरोप की बात करें साथ में पुलिस भी थी जिसने ऐसा करने वालो का साथ दिया
इस घटना को 15 से 20 दिन हो गए लेकिन झारखण्ड की सरकार किसी कारनवश कार्यवाही न करने के लिए और ऐसे गिरोह के लोगो को धड़ल्ले से किसी की हत्या करने के लिए प्रशासन का सह दे रही है
अगर एक प्रकार का धारणा देखे तो बीजेपी की सरकार आरएसएस के दबाव में है
मिनहाज के मौत का कारन बताया जा रहा कि उसकी मौत बीमारी से हुई और ऐसे इस मामला को दबाया जा रहा है परंतु पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट देखें तो इसमें साफ़ लिखा हुआ है कि मिनहाज को "पैरों के तरफ काफी चोट लगी है और मुह से खून के भी निशान मिले हैं"
यानि मौत की वजह कोई बीमारी नहीं बल्कि उसे पिट कर मारा गया है....
मिनहांज एक दुधमुही पुत्री का पिता भी था और प्रधानमंत्री मोदी जी का नारा "बेटी पढ़ाव बेटी बचाव" इस घटना के बाद मरता दिख रहा है
पोस्टमॉर्टेम की रिपोर्ट से ये मामला तो साफ़ हो गया है कि मिनहाज को इतना पीटा गया है कि उसकी मौत हो जाती है और ये पीटने कि घटना पुलिस कस्टडी में हुई है ये बात इस बात से साबित होता है कि मिनहाज के पिता ने बयान दिया है कि घर आये मिनहाज़ को पुलिस बिना किसी आरोप के पकड़ के ले गयी और तभी ये पता चलता है कि उसकी मौत थाने में हो गयी...
मृत मिनहाज के पिता ने कानून और न्यायलय पर भरोसा करते हुए केस किया है और याचिका दायर की है ताकि उनके पुत्र को इन्साफ मिल सके
मिनहाज़ के पिता ने याचिका तथा FIR की प्रतिलिपि माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, महिला आयोग, राष्ट्रिय अल्पसंख्यक आयोक, झारखण्ड मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, मानवाधिकार आयोग, पुलिस महानिदेशक, पुलिस आरक्षी महानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक जामताड़ा को भेजी है.
ज्ञात हो कि जामताड़ा इलाके में दहशत का माहौल है सब डरे और सहमे हुए हैं
इस घटना को लेकर काफी गहमागहमी भी देखने को मिल रही है और मुख्यमंत्री ने खुद आश्वासन दिया है कि इसकी जाँच होगी तथा दोषियों को सजा मिलेगी
सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में होने कि वजह इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश हो रही है.
कुछ लोकल NGO इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं और ऐसे में उन्हें ऐसे गर्म माहौल में सिर्फ दुश्वारी का सामना करना पड सकता है इसलिए इसे कानूनी मामले में कोशिश होनी चाहिए कि केस को न्यायलय के देखरेख में आगे बढ़ाना चाहिए
रफ़ीक अहमद

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