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Saturday, June 11, 2011

मरीजों के व्यंजन से हमारे नाश्ते की टेबल तक

देश और दुनिया में नाश्ते के पसंदीदा व्यंजनों में शुमार होने वाले कॉर्न फ्लेक्स की ईजाद का किस्सा काफी दिलचस्प है। यह वर्ष 1894 की बात है। उस वक्त डॉ. जॉन हार्वे कैलॉग मिशिगन के बैटल क्रीक में एक अस्पताल व हेल्थ स्पा के सुपरिंटेंडेंट और उनके छोटे भाई विल कीथ बिजनेस मैनेजर थे।

अस्पताल में उस वक्त मरीजों को पौष्टिक शाकाहारी भोजन दिए जाने पर जोर था। कैलॉग बंधु मरीजों के लिए अनाज का ऐसा व्यंजन तैयार करना चाहते थे, जो सुपाच्य हो। इसी क्रम में एक दिन वे गेहूं उबाल रहे थे कि उन्हें किसी काम से बाहर जाना पड़ा। लौटकर आने पर पाया कि गेहूं के दाने ठंडे व बासी हो चुके हैं। लेकिन बजट कम होने के चलते उन्होंने इसी से व्यंजन तैयार करने की सोची।

उन्होंने इन गीले दानों को बेलन प्रक्रिया से गुजारा, जिससे इनका आकार लंबा, चपटा और पपड़ी जैसा हो गया। भूनने पर ये हल्के और कुरकुरे हो गए, जिन्हें दूध के साथ मिलाकर हल्के आहार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था। 31 मई, 1895 को उन्होंने अनाज की पपड़ी तैयार करने की इस तकनीक के पेटेंट हेतु आवेदन किया। पेटेंट मिलने पर विल कीथ ने बीसवीं सदी की शुरुआत में अपनी कॉर्न फ्लेक्स कंपनी स्थापित की।

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