समझदारी एक बहुत ही बड़ी चीज़ है जो शायद लगता है सबके पास है लेकिन उसका इस्तेमाल बहुत कम लोग ही कर पाते हैं
ये बहुत ज़रूरी है कि देश की जनता आपस में मिलकर एक दूसरे के सुख दुःख में हमेशा शामिल हो और ये उससे ज़्यादा ज़रूरी है कि उनके हक़ की लड़ाई में साथ दें
मोहब्बत के दंगे परिवार हमेशा से देश के हर नागरिक चाहे वो किसी धर्म मज़हब या जाती या प्रान्त का हो उसके ऊपर जुल्म के खिलाफ बोलता रहा है और आगे भी बोलेगा क्युकी हम किसी राजनैतिक पार्टी की सोच को अपने परिवार पर हावी नहीं होने देंगे लेकिन किसी राजनैतिक पार्टी या नेता की वजह से देश का माहौल ख़राब होगा तो उसका विरोध ज़रूर करेंगे
लेकिन जैसा मैंने कहा ये समझदारी की बात है लेकिन उससे ज़्यादा समझदारी की बात ये है कि हम अपनी मानसिकता समय समय पर हालात पर न बदलें|
अगर एक हिन्दू भाई किसी मुस्लिम के हक़ की बात बुलंद करता है तो वो हीरो बन जाता है मुसलमानो के लिए लेकिन अगर कोई मुस्लिम आवाज़ बुलंद नहीं कर पाता तो इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने सेक्युलर सोच और अपनी समझदारी को ख़त्म कर दें
अगर एक मुस्लमान भाई किसी हिन्दू भाई के लिए आवाज़ बुलंद करता है तो वो ये भी न सोचे कि हमारे लिए भी कोई आवाज़ बुलंद करता रहे
ये एक दूसरे के साथ खड़े रहने की नौबत इसलिए आती है क्युकी सत्ता में बैठी अंधी सरकार और हमारे नेता उस समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचना चाहते हैं जिसे काट कर शायद वो समस्या ही ख़त्म हो जाए
हमारे ही समाज के जाती धर्म प्रान्त भाषा के नाम पर राजनीती करने वाले लोग इस तरह के समस्याओं को ख़त्म करने की कोशिश नहीं करते और समाज के जनता को एक स्टेज पर लाने से डरते हैं क्युकी आपसे एकता से ऐसे नेताओ की रोज़ी रोटी पर बन आएगी
इसलिए आपसी एकता एक सोच है और सार्वभौमिक सत्य है जो दुनिया के ख़त्म होने तक रहेगी अब देखना ये है कि हम आप उस सच्चाई पर कब तक और किस किस हालात में अडिग रहते हैं
MohabbatKeDange
Ek Desh Ek Parivar
Rafique Ahmad
ये बहुत ज़रूरी है कि देश की जनता आपस में मिलकर एक दूसरे के सुख दुःख में हमेशा शामिल हो और ये उससे ज़्यादा ज़रूरी है कि उनके हक़ की लड़ाई में साथ दें
मोहब्बत के दंगे परिवार हमेशा से देश के हर नागरिक चाहे वो किसी धर्म मज़हब या जाती या प्रान्त का हो उसके ऊपर जुल्म के खिलाफ बोलता रहा है और आगे भी बोलेगा क्युकी हम किसी राजनैतिक पार्टी की सोच को अपने परिवार पर हावी नहीं होने देंगे लेकिन किसी राजनैतिक पार्टी या नेता की वजह से देश का माहौल ख़राब होगा तो उसका विरोध ज़रूर करेंगे
लेकिन जैसा मैंने कहा ये समझदारी की बात है लेकिन उससे ज़्यादा समझदारी की बात ये है कि हम अपनी मानसिकता समय समय पर हालात पर न बदलें|
अगर एक हिन्दू भाई किसी मुस्लिम के हक़ की बात बुलंद करता है तो वो हीरो बन जाता है मुसलमानो के लिए लेकिन अगर कोई मुस्लिम आवाज़ बुलंद नहीं कर पाता तो इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने सेक्युलर सोच और अपनी समझदारी को ख़त्म कर दें
अगर एक मुस्लमान भाई किसी हिन्दू भाई के लिए आवाज़ बुलंद करता है तो वो ये भी न सोचे कि हमारे लिए भी कोई आवाज़ बुलंद करता रहे
ये एक दूसरे के साथ खड़े रहने की नौबत इसलिए आती है क्युकी सत्ता में बैठी अंधी सरकार और हमारे नेता उस समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचना चाहते हैं जिसे काट कर शायद वो समस्या ही ख़त्म हो जाए
हमारे ही समाज के जाती धर्म प्रान्त भाषा के नाम पर राजनीती करने वाले लोग इस तरह के समस्याओं को ख़त्म करने की कोशिश नहीं करते और समाज के जनता को एक स्टेज पर लाने से डरते हैं क्युकी आपसे एकता से ऐसे नेताओ की रोज़ी रोटी पर बन आएगी
इसलिए आपसी एकता एक सोच है और सार्वभौमिक सत्य है जो दुनिया के ख़त्म होने तक रहेगी अब देखना ये है कि हम आप उस सच्चाई पर कब तक और किस किस हालात में अडिग रहते हैं
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