जो काम आसान है उसे हम क्यों इतना उलझा हुआ बना देते हैं?
आप कोशिश कर के देखिए
जब एक बच्चा रोता है तो उसे कभी डांटकर या पिट के चुप करा कर दिखा दीजिए तो मान जाएंगे हम कि आप भी तुर्रम खान से कम नहीं
लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हु कि अगर आप उसी रोते हुए बच्चे को प्यार से दुलार से मिठाई देकर चुप कराएं तो वो जल्दी मान जाता है
हमने बेमतलब की एक ज़िद पाल रखी है कि हम प्यार से आपसी एकता के साथ और मोहब्बत से साथ नहीं रहेंगे चाहे कोई कुछ कर ले......
उसी ज़िद में हम अपने आस पास के हर तंत्र, नियम, कानून को शक की नज़र से देखने लगते हैं! ऐसा लगता है सभी हमारे खिलाफ साज़िश में लगे हुए हैं|
सब आपसे नफरत करते हैं. फिर देखते ही देखते आप एक ऐसे नकारात्मक सोच के घेरे में आजाते हैं कि फिर आप उससे बचने के कोशिश में लग जाते हैं.....और कोशिश में आप ऐसी ताकतों के तरफ खींचे चले जाते हैं जो आपको झूठी तसल्ली, झूठ वादा, झूठे सपने दिखा कर आज़ादी की बात और आपके सोच को सही साबित करने की कोशिश करते हैं जिसका कोई रिजल्ट नहीं होता.
एक क्षद्म/ झूठी दुनिया आपके चारो तरफ बन जाती है जहाँ आपको बताया जाता है कि आपके जैसे सोचने वाले दोस्त और आप जैसा ना सोचने वाले दुश्मन होते हैं..
यहाँ आपका सिर्फ एक ही इलाज है कि या तो आप दुनिया से अलग हो कर अपनी एक अलग दुनिया बना लें जो कि मुमकिन नहीं या फिर उसी दुनिया में आप ऐसे लोगो से मिले जिन्होंने जीने के मकसद को जाना और पहचान है लेकिन उसे भी समझने के लिए आपके दिल में एक बच्चे का दिल चाहिए जो सिखने को तैयार रहे.
बच्चो जैसे मोहब्बत से भरा दिल ही कुछ सिखने को तैयार होता है..........
भारत में न जाने कबसे राजनीती चली आ रही है और हम सब इसके उपभोक्ता बन गए हैं.
राजनीती जो परोसती है उसे हम स्वीकार कर लेते हैं, हमने कभी अपने हिसाब से राजनीती को समझने और अपने हिसाब के पकवान को परोसने के लिए मजबूर ही नहीं किया.. और ना कोशिश करते हैं.......
हमें हिन्दू मुस्लिम की आपसी लड़ाई और नफरत में ऐसे धकेल दिया जाता है कि हम सब जानते हुए भी आँख बंद कर लेते हैं और अंधो की तरह उस अँधेरे में चले जाते हैं जहाँ कुछ ऐसे चीज़ के तलाश में रहते हैं जिसका कोई वजूद ही नहीं है दुनिया में.
हमें ऐसे ही अँधेरे में दीवारों से टकराने के लिए छोड़ दिया जाता है वो भी पुरे 5 सालों के लिए और साथ ही साथ जीवन भर का दर्द और जख्म भी बोनस के तौर पर मिलता है.
कभी हम सोचते भी हैं कि ऐसे आखिर अँधेरे में हम क्यों भटक रहे हैं और कब तक भटकेंगे?? ये सोच आती भी होगी लेकिन ये सोच अपनी आधार और जड़ को और मजबूत कर ही पाती उससे पहले ही हम एक नए उलझन में उलझा दिए जाते हैं कि हमारा धर्म किसी से कम क्यों हो??
क्या वाक़ई में हमें अपने धर्म की प्रतिष्ठा इतनी खतरे में दिखती है कि हम किसी कि जान लेने में भी नहीं सोचते?? या फिर ये एक भ्रम है? या फिर ये एक कुंठा है?
क्या हम इस भ्रम के साथ दुनिया में जी रहे है कि हमारा धर्म हमारे बच्चो को अपने स्कूलों में उस दोस्त से मिलने को रोकेगा जो उसके धर्म का नहीं है??
क्या वो बच्चा कभी किसी दुकान से कलम कॉपी, पकोड़े, समोसे नहीं खरीदेगा जिसे वो जनता भी नहीं है कि अपने धर्म का है या नहीं ??
क्या हम अपने ज़िद को बच्चो के सर पर लाद सकते हैं?? क्या हम अपने मन की कुंठा को किसी और के मन की कुंठा बनने देंगे?? क्या होगा जब वो नहीं मानेगा?? क्या होगा जब आपका बच्चा बड़ा होकर आपके कुंठा को गलत साबित कर देगा??
हम नफरत की खेती करने के पीछे क्यों पड़े हैं जिसकी खेती बहुत ही महँगी और बाद में ज़मीन बंज़र होने का पूरा का पूरा खतरा होता है?
हमारे किसान अपने खेतो के अनाज किसी दूसरे धर्म के लिए नहीं उपजाते ??? क्या किसान हमारे देश में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई देख कर अनाज बेचता है??
क्या उसकी कड़ी मेहनत जो दिन रात धुप में पसीने बहाकर हमारे आपके भविष्य के भोजन की व्यवस्था करता है वो किसी एक खास धर्म के लिए होता है???
क्या हमारे सैनिक किसी एक धर्म के लिए अपने जान को कुर्बान कर रहे हैं? सीमा पर शहीद होने के लिए, हमारी आपकी रक्षा के लिए अपने जान को दाव पर लगाए रखे हुए हैं?
हमारी ज़िन्दगी की में रिस्क, तकलीफ नाम की तो चीज़ ही नहीं होती अगर इंसान ने अपने लिए न पैदा किया होता तो.
जिसने दुनिया और हमारी ज़िन्दगी की रचना की है क्या वो आपको तकलीफ में रखेगा? उसने तो बस हमारे कर्म को आधार बनाया था जिससे हमें सुख और दुःख की प्राप्ति होगी.
तो क्यों हम दुःख की खोज में रहते हैं? जबकि मोहब्बत को इतना आसान और अपने चारो तरफ आम कर रखा है उस रचयिता ने....
सुबह की में आँख खुलना, आँख खुलते है पहली किरण, चिड़ियों की चहचहाहट, झरनों की मधुर आवाज़ और आपके कानो और आँखों के लिए आपके माता पिता की छवि और आवाज़ ये मोहब्बत नहीं तो क्या है??
तो फिर कैसे नहीं हम दुसरो को मोहब्बत बाँट सकते हैं?
कैसे हम नफरत के बीज लिए मोहब्बत के फसल बोयेंगे?
कोशिश करके देखिए देश में हर कोई मोहब्बत के लिए आपकी तरफ नज़र लगाए बैठा है, शुरुआत करने की देरी है, देश बाहें फैलाये हुए है बस हमें करीब जाना है इसे अपनाना है
इसी कोशिश में है "मोहब्बत के दंगे" परिवार जिसका नारा है एक देश एक परिवार
जय हिन्द
Rafique Ahmad
आप कोशिश कर के देखिए
जब एक बच्चा रोता है तो उसे कभी डांटकर या पिट के चुप करा कर दिखा दीजिए तो मान जाएंगे हम कि आप भी तुर्रम खान से कम नहीं
लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हु कि अगर आप उसी रोते हुए बच्चे को प्यार से दुलार से मिठाई देकर चुप कराएं तो वो जल्दी मान जाता है
हमने बेमतलब की एक ज़िद पाल रखी है कि हम प्यार से आपसी एकता के साथ और मोहब्बत से साथ नहीं रहेंगे चाहे कोई कुछ कर ले......
उसी ज़िद में हम अपने आस पास के हर तंत्र, नियम, कानून को शक की नज़र से देखने लगते हैं! ऐसा लगता है सभी हमारे खिलाफ साज़िश में लगे हुए हैं|
सब आपसे नफरत करते हैं. फिर देखते ही देखते आप एक ऐसे नकारात्मक सोच के घेरे में आजाते हैं कि फिर आप उससे बचने के कोशिश में लग जाते हैं.....और कोशिश में आप ऐसी ताकतों के तरफ खींचे चले जाते हैं जो आपको झूठी तसल्ली, झूठ वादा, झूठे सपने दिखा कर आज़ादी की बात और आपके सोच को सही साबित करने की कोशिश करते हैं जिसका कोई रिजल्ट नहीं होता.
एक क्षद्म/ झूठी दुनिया आपके चारो तरफ बन जाती है जहाँ आपको बताया जाता है कि आपके जैसे सोचने वाले दोस्त और आप जैसा ना सोचने वाले दुश्मन होते हैं..
यहाँ आपका सिर्फ एक ही इलाज है कि या तो आप दुनिया से अलग हो कर अपनी एक अलग दुनिया बना लें जो कि मुमकिन नहीं या फिर उसी दुनिया में आप ऐसे लोगो से मिले जिन्होंने जीने के मकसद को जाना और पहचान है लेकिन उसे भी समझने के लिए आपके दिल में एक बच्चे का दिल चाहिए जो सिखने को तैयार रहे.
बच्चो जैसे मोहब्बत से भरा दिल ही कुछ सिखने को तैयार होता है..........
भारत में न जाने कबसे राजनीती चली आ रही है और हम सब इसके उपभोक्ता बन गए हैं.
राजनीती जो परोसती है उसे हम स्वीकार कर लेते हैं, हमने कभी अपने हिसाब से राजनीती को समझने और अपने हिसाब के पकवान को परोसने के लिए मजबूर ही नहीं किया.. और ना कोशिश करते हैं.......
हमें हिन्दू मुस्लिम की आपसी लड़ाई और नफरत में ऐसे धकेल दिया जाता है कि हम सब जानते हुए भी आँख बंद कर लेते हैं और अंधो की तरह उस अँधेरे में चले जाते हैं जहाँ कुछ ऐसे चीज़ के तलाश में रहते हैं जिसका कोई वजूद ही नहीं है दुनिया में.
हमें ऐसे ही अँधेरे में दीवारों से टकराने के लिए छोड़ दिया जाता है वो भी पुरे 5 सालों के लिए और साथ ही साथ जीवन भर का दर्द और जख्म भी बोनस के तौर पर मिलता है.
कभी हम सोचते भी हैं कि ऐसे आखिर अँधेरे में हम क्यों भटक रहे हैं और कब तक भटकेंगे?? ये सोच आती भी होगी लेकिन ये सोच अपनी आधार और जड़ को और मजबूत कर ही पाती उससे पहले ही हम एक नए उलझन में उलझा दिए जाते हैं कि हमारा धर्म किसी से कम क्यों हो??
क्या वाक़ई में हमें अपने धर्म की प्रतिष्ठा इतनी खतरे में दिखती है कि हम किसी कि जान लेने में भी नहीं सोचते?? या फिर ये एक भ्रम है? या फिर ये एक कुंठा है?
क्या हम इस भ्रम के साथ दुनिया में जी रहे है कि हमारा धर्म हमारे बच्चो को अपने स्कूलों में उस दोस्त से मिलने को रोकेगा जो उसके धर्म का नहीं है??
क्या वो बच्चा कभी किसी दुकान से कलम कॉपी, पकोड़े, समोसे नहीं खरीदेगा जिसे वो जनता भी नहीं है कि अपने धर्म का है या नहीं ??
क्या हम अपने ज़िद को बच्चो के सर पर लाद सकते हैं?? क्या हम अपने मन की कुंठा को किसी और के मन की कुंठा बनने देंगे?? क्या होगा जब वो नहीं मानेगा?? क्या होगा जब आपका बच्चा बड़ा होकर आपके कुंठा को गलत साबित कर देगा??
हम नफरत की खेती करने के पीछे क्यों पड़े हैं जिसकी खेती बहुत ही महँगी और बाद में ज़मीन बंज़र होने का पूरा का पूरा खतरा होता है?
हमारे किसान अपने खेतो के अनाज किसी दूसरे धर्म के लिए नहीं उपजाते ??? क्या किसान हमारे देश में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई देख कर अनाज बेचता है??
क्या उसकी कड़ी मेहनत जो दिन रात धुप में पसीने बहाकर हमारे आपके भविष्य के भोजन की व्यवस्था करता है वो किसी एक खास धर्म के लिए होता है???
क्या हमारे सैनिक किसी एक धर्म के लिए अपने जान को कुर्बान कर रहे हैं? सीमा पर शहीद होने के लिए, हमारी आपकी रक्षा के लिए अपने जान को दाव पर लगाए रखे हुए हैं?
हमारी ज़िन्दगी की में रिस्क, तकलीफ नाम की तो चीज़ ही नहीं होती अगर इंसान ने अपने लिए न पैदा किया होता तो.
जिसने दुनिया और हमारी ज़िन्दगी की रचना की है क्या वो आपको तकलीफ में रखेगा? उसने तो बस हमारे कर्म को आधार बनाया था जिससे हमें सुख और दुःख की प्राप्ति होगी.
तो क्यों हम दुःख की खोज में रहते हैं? जबकि मोहब्बत को इतना आसान और अपने चारो तरफ आम कर रखा है उस रचयिता ने....
सुबह की में आँख खुलना, आँख खुलते है पहली किरण, चिड़ियों की चहचहाहट, झरनों की मधुर आवाज़ और आपके कानो और आँखों के लिए आपके माता पिता की छवि और आवाज़ ये मोहब्बत नहीं तो क्या है??
तो फिर कैसे नहीं हम दुसरो को मोहब्बत बाँट सकते हैं?
कैसे हम नफरत के बीज लिए मोहब्बत के फसल बोयेंगे?
कोशिश करके देखिए देश में हर कोई मोहब्बत के लिए आपकी तरफ नज़र लगाए बैठा है, शुरुआत करने की देरी है, देश बाहें फैलाये हुए है बस हमें करीब जाना है इसे अपनाना है
इसी कोशिश में है "मोहब्बत के दंगे" परिवार जिसका नारा है एक देश एक परिवार
जय हिन्द
Rafique Ahmad
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