विश्व भर के कर्मचारियों की दर्द भरी कहानी जो हर रोज़ घटती है
एक 55 साल के बूढ़े लेकिन सेहत से तंदुरुस्त शंकर चाचा थे जो अम्बानी ग्रुप में पिछले 28 साल से एक चौकीदार का काम करते थे
एक मेरे चाचा या फिर दोस्त कहें जो दुबई में काम करते थे पिछले 18 से एक कंस्ट्रक्शन की कंपनी में फोरमैन के पोस्ट पर काम करते थे नाम है गफूर चाचा
उनकी नौकरी भले अलग अलग देश यानि हिन्दोस्तान और दुबई में हो लेकिन अगर उनके ज़िन्दगी पर गौर करेंगे तो बहुत समानता मिलेगी
शंकर चाचा को लगभग हर कोई जनता था जो आते जाते सबको सलूट / सलाम करते थे एक उम्मीद भरी मुस्कराहट के साथ गुड मॉर्निंग कहते थे जिसे देख कर शायद घर से निकले परेशान कर्मचारी भी सकारात्मकता से भर जाते थे.
उसी तरह गफूर चाचा थे जिनकी मेहनत से कंपनी के बहुत सारे प्रोजेक्ट को अंजाम दिया उनके साथ काम करने वाले लेबर ने कभी उनके बारे में गलत नहीं बोला होगा और न कभी गफूर चाचा कभी अपने लेबर को भारी काम ज़बरजस्ती कराते थे...
लेकिन तभी सन 2014 में शंकर चाचा और गफूर चाचा के ज़िन्दगी में हलचल मच गयी जब उनके कंपनी
में कुछ ऑफिस के कागजात और गफूर चाचा के कंपनी से सामान की चोरी हुई तो सीधा इल्जाम उनके ऊपर आया.
खोजबीन के बाद पता चला कि दोनों चाचा पुरे तौर पर नहीं लेकिन थोड़े से शामिल थे चोरी में
कंपनी के HR से एक चिठ्ठी मिली कि आपको नौकरी से निकाला जा रहा है क्योंकि आप हमारे कंपनी के पुराने कर्मचारी रहे हैं इसलिए चोरी के मामले में किसी तरह की की कार्यवाही नहीं की जाएगी ऐसा आश्वासन दिया गया. आपकी सैलरी तो मितली थी इसलिए जो बाकि के हिसाब किताब थे वो आकर बाद में ले जाएं
दोनों चाचा बेचारे अपनी ज़िन्दगी के बचे हुए दिन के लिए कोशिश में लग गए
ये जो कहानी है इसे अब अपने देश के भलाई और आपके वोट से जोड़ कर देखिए
क्या मैं आप अपने देश को ऐसे ही हाथो में सौंप रहे हैं जो जो देश के जनता के द्वारा दिया जाने वाले वाला टैक्स से सैलरी लेता है और देश के ही धन को कालाधन के रूप में विदेश में जमा करता है..
क्या हम ऐसे नेताओ को अपने वोट के लिस्ट से निकाल के बाहर करते हैं जो अपने कर्तव्य को ही पूरा नहीं करता और समाज को धर्मो के नाम पर तोड़ता है ??
क्या आपने कभी ऐसे नेताओ को दुबारा वोट नहीं देने की कसम खायी ?
जब एक छोटी सी कंपनी अपने फायदे के लिए किसी तरह के रिश्ते को बिच में नहीं आने दी तो फिर आप किसी नेता से क्यों रिश्ता बना लेते हैं ??
देश के विकास और उसकी बर्बादी सिर्फ और सिर्फ आपके एक वोट पर निर्भर करता है
तो फिर आप क्यों जानबूझ कर इसे ऐसे नेताओ को देते हैं जो देश के भलाई और आपके आसपास के मोहल्ला में विकास भी नहीं कर सकता
जिस जगह आप नौकरी करते हैं वहां आपको फ़ौरन टर्मिनेट ये बोल कर दिया जाता है कि कंपनी के पास काम नहीं है या फिर आपसे कंपनी को फायदा नहीं है उस जगह आप अपने वोट को ऐसे हाथ में कैसे दे सकते हैं जिससे देश को फायदा नहीं है और नाही आपके बच्चो को ??
साम्प्रदायिकता के आग में समाज को झुलसाने वाला नेता बार बार जित जाए और फिर आप अपने फायदे की और देशहित की बात करें ये कैसे मुमकिन है ??
सोचिए !!!!!!!!!!!
एक 55 साल के बूढ़े लेकिन सेहत से तंदुरुस्त शंकर चाचा थे जो अम्बानी ग्रुप में पिछले 28 साल से एक चौकीदार का काम करते थे
एक मेरे चाचा या फिर दोस्त कहें जो दुबई में काम करते थे पिछले 18 से एक कंस्ट्रक्शन की कंपनी में फोरमैन के पोस्ट पर काम करते थे नाम है गफूर चाचा
उनकी नौकरी भले अलग अलग देश यानि हिन्दोस्तान और दुबई में हो लेकिन अगर उनके ज़िन्दगी पर गौर करेंगे तो बहुत समानता मिलेगी
शंकर चाचा को लगभग हर कोई जनता था जो आते जाते सबको सलूट / सलाम करते थे एक उम्मीद भरी मुस्कराहट के साथ गुड मॉर्निंग कहते थे जिसे देख कर शायद घर से निकले परेशान कर्मचारी भी सकारात्मकता से भर जाते थे.
उसी तरह गफूर चाचा थे जिनकी मेहनत से कंपनी के बहुत सारे प्रोजेक्ट को अंजाम दिया उनके साथ काम करने वाले लेबर ने कभी उनके बारे में गलत नहीं बोला होगा और न कभी गफूर चाचा कभी अपने लेबर को भारी काम ज़बरजस्ती कराते थे...
लेकिन तभी सन 2014 में शंकर चाचा और गफूर चाचा के ज़िन्दगी में हलचल मच गयी जब उनके कंपनी
में कुछ ऑफिस के कागजात और गफूर चाचा के कंपनी से सामान की चोरी हुई तो सीधा इल्जाम उनके ऊपर आया.
खोजबीन के बाद पता चला कि दोनों चाचा पुरे तौर पर नहीं लेकिन थोड़े से शामिल थे चोरी में
कंपनी के HR से एक चिठ्ठी मिली कि आपको नौकरी से निकाला जा रहा है क्योंकि आप हमारे कंपनी के पुराने कर्मचारी रहे हैं इसलिए चोरी के मामले में किसी तरह की की कार्यवाही नहीं की जाएगी ऐसा आश्वासन दिया गया. आपकी सैलरी तो मितली थी इसलिए जो बाकि के हिसाब किताब थे वो आकर बाद में ले जाएं
दोनों चाचा बेचारे अपनी ज़िन्दगी के बचे हुए दिन के लिए कोशिश में लग गए
ये जो कहानी है इसे अब अपने देश के भलाई और आपके वोट से जोड़ कर देखिए
क्या मैं आप अपने देश को ऐसे ही हाथो में सौंप रहे हैं जो जो देश के जनता के द्वारा दिया जाने वाले वाला टैक्स से सैलरी लेता है और देश के ही धन को कालाधन के रूप में विदेश में जमा करता है..
क्या हम ऐसे नेताओ को अपने वोट के लिस्ट से निकाल के बाहर करते हैं जो अपने कर्तव्य को ही पूरा नहीं करता और समाज को धर्मो के नाम पर तोड़ता है ??
क्या आपने कभी ऐसे नेताओ को दुबारा वोट नहीं देने की कसम खायी ?
जब एक छोटी सी कंपनी अपने फायदे के लिए किसी तरह के रिश्ते को बिच में नहीं आने दी तो फिर आप किसी नेता से क्यों रिश्ता बना लेते हैं ??
देश के विकास और उसकी बर्बादी सिर्फ और सिर्फ आपके एक वोट पर निर्भर करता है
तो फिर आप क्यों जानबूझ कर इसे ऐसे नेताओ को देते हैं जो देश के भलाई और आपके आसपास के मोहल्ला में विकास भी नहीं कर सकता
जिस जगह आप नौकरी करते हैं वहां आपको फ़ौरन टर्मिनेट ये बोल कर दिया जाता है कि कंपनी के पास काम नहीं है या फिर आपसे कंपनी को फायदा नहीं है उस जगह आप अपने वोट को ऐसे हाथ में कैसे दे सकते हैं जिससे देश को फायदा नहीं है और नाही आपके बच्चो को ??
साम्प्रदायिकता के आग में समाज को झुलसाने वाला नेता बार बार जित जाए और फिर आप अपने फायदे की और देशहित की बात करें ये कैसे मुमकिन है ??
सोचिए !!!!!!!!!!!
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