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Tuesday, October 4, 2016

मुस्लिम भाइयों, जैसा कि यह मुहर्रम का महीना हैं.

मुस्लिम भाइयों, जैसा कि यह मुहर्रम का महीना हैं.ताजिया बनाने के नाम पर एक पैसा भी चन्दा न दें. ताजिया बनाने वाले अधिकांश लोग मवाली और पियक्कड़ प्रकृति के युवा होते हैं.जो गांव-शहर की गलियों में बेरोजगारी का चिलम किसी चौराहे के चोचले पर बैठे सालों भर फूँकते रहते हैं. सड़क किनारे हनुमान का धूजा लहरा चन्दा उगाही करने वाले भी ऐसे ही होते हैं.

इस महीने ये गिरोह सक्रिय हो जाते हैं,दो कारणों से. पहला,10 दिनों तक इमामवाड़े पर चढ़ने वाले खीर-मलीदे खाने से इनकी सेहत दुरुस्त हो जाती हैं.दूसरा, इमामवाड़ों पर लड़कियों की आमदो-रफ्त बढ़ जाती है,जिससे इन लफंगों के उजड़े दयार में रौनक लौट आती हैं. कई रिज्ज़ो की प्रेम कहानी इन्हीं बर्बाद लौंडे के हाथों दुःखद स्तिथि तक पहुंच जाती हैं.

मेहनत से कमाई पैसे इन दारूबाजों के हाथों न जाने दीजिये. तैमूर के मिज़ाज से आगे निकल जाना बेहतर .देश-समाज को बदसूरत बनाने वाला पाखण्ड और उसके नुमाइंदे को ख़ारिज कीजिये.

Anonymous 

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