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Monday, June 29, 2015

वजूद की लड़ायी लड़ते भारतीय मुसलमान?


मैं क्या भारत का हर मुसलमान इस बात को मानता है कि भारतीय मुसलमान अपने देश से ज़्यादा किसी से मुहब्बत नहीं करता।
और बस वही वजह जो ज़िन्दगी के हर पहलु में जहाँ जहाँ वो समाज से जुड़ा है वह वहां वहां ये सबूत देते नज़र आएगा की वो एक सच्चा भारतीय मुसलमान है जो कभी भी अपने मुल्क के लिए लड़ने और मरने मारने को तयार रहता है।
क्या ये कम है कि हिन्दुस्तान की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले लोग कभी अपने रोज़गार, सामाजिक समानता या अपने फायदे के लिए ना लड़कर बल्कि सिर्फ ये बात करते नज़र आते हैं कि हम भी उतने ही भारतीय और देशभक्त हैं जितने दूसरे खुद को समझते हैं।
जबकि 21वीं सदी में हम जी रहे हैं और होना ये चाहिए कि हम सब मिल कर समाज की बुराई, बेरोजगारी, सामाजिक असमानता , तकनीक के लिए लिए बात करें और अपनी बात सरकार से मानवाये लेकिन एक इंसान की 60 साल की ज़िन्दगी में ये सब बात शायद ही सुनने को मिले लेकिन वो किस धर्म का है और अगर मुस्लम है तो कितना देशभक्त है वही साबित करते करते मर जाता है।
जो समय स्कूल में अपने हर धर्म के दोस्तों के गुज़ारता है उसइ बड़ा होक पता चलता है कि वो हिन्दू था या मुस्लिम या सिख था। जब तक अपने बचपन की ज़िन्दगी थी सब ठीक था लेकिन बड़े होने पर हम और बेवकूफ होते जा रहे हैं और बस उसी बेवकूफी का फायदा कुछ नेता उठा लेते हैं।
मुस्लिम तबका अभी भी हर मामले में पिछड़ा हुआ है लेकिन उसी को टारगेट बना लिए जाता है और जो हाल बुरा है उसे बदतर बनाने की भरसक कोशिश होती है जिसमे सबसे ज़्यादा भागीदारी खुद अपनी है।
अगर मेरा ये पोस्ट कोई ऐसे मुस्लिम पिता पढ़ रहे हैं तो आप किसी को मुस्लिम के ख़राब हालात को ज़िम्मेदार ठहराने से पहले ये देखे कि आप कितना मेहनत कर रहे हैं अपने बच्चो को सही तालीम देने के लिए। ख़ास कर NRI मुस्लिम लोगो से पूछना है कि आपके पैसे का कैसे इस्तेमाल हो रहा है उसका हिसाब लेते रहे क्योंकि मैं ने बहुत लोगो के फॅमिली को देखा जिनके बच्चे अच्छे अच्छे बाइक लेकर हीरो बनते फिरते हैं और घर की औरतें किसी जवेल्लरी की दूकान में।
जब हम परिवार को आप ठीक करने की कोशिश करेंगे तो फिर सरकार से भी सवाल कर सकते हैं कि वो हमें क्या क्या सहूलियत दे रहे हैं।
खैर बात बहुत लंबी हो जाएगी बस कहना है की वजूद की इस लड़ाई में शुरुआत खुद के घर से होना चाहिए।

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