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Sunday, August 14, 2011

सिवान -अगस्त क्रांति से दहला था

गुलाम भारत की तस्वीर बदलने में 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका अहम रही है। देश के मानचित्र पर मजबूत इरादों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले जिले के नौनिहालों ने तब इस आंदोलन के जरिये देश का नक्शा बदलने में कारगर भूमिका निभाई। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वाधीनता के इतिहास में तब एक नये युग की शुरुआत की थी, उसी प्रकार से इस आंदोलन के जरिये सिवान की राजनीति में भी उबाल आ गया। इस दौरान यहां के 152 लोग शहीद हुए थे। कांग्रेस ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया वहीं भारतीयों ने करो या मरो का व्रत लिया। ऐसे में नौ अगस्त 1942 की आग से सिवान भी अछूता नहीं रहा। पूरे जिले में आंदोलन को जबरदस्त जन समर्थन मिला। महात्मा गांधी और राजेन्द्र बाबू की गिरफ्तारी से लोगों में भारी रोष और ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ गुस्सा था। छात्रों ने शहर के हर चौक-चौराहों पर आक्रोश जुलूस निकाला और सभाएं की। सिवान में अदालत के अहाते में बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ। अदालत और ट्रेजरी के भवनों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया। जिले के डीएवी कालेज और शहर के तीन उच्च विद्यालयों में पूरी तरह से हड़ताल रही। छात्रों ने पूरे शहर में जुलूस निकाला और सरकार के खिलाफ नारे लगाये। वासुदेव नारायण सिन्हा की अध्यक्षता में सभा का आयोजन कर इंकलाब जिंदाबाद, हिंदुस्तान आजाद, अंग्रेजों भारत छोड़ दो, करेंगे या मरेंगे और चालीस कोटि नहीं डरेंगे के नारे लगाए गए। उसी रोज शाम में सिवान के गदाधर प्रसाद श्रीवास्तव, डा. सरयू प्रसाद गुप्ता और प. भूमित्र शर्मा की गिरफ्तारी के लिए छापामारी की गई, लेकिन कांग्रेस के कुछ रसीदों के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ। सिवान का राजनीतिक तापमान काफी गरम था। 12 अगस्त को छात्रों द्वारा कचहरी पर फहराये झंडे को उतार देने की सूचना जब उन्हें मिली तो वे क्रोधित हो उठे। इसके विरोध में 13 अगस्त को बहुत बड़ा जुलूस निकाला गया। बाजार का दिन होने के कारण जुलूस के साथ पूरा शहर उमड़ पड़ा। भीड़ की तादाद करीब दस हजार थी। फौजदारी पर झंडा न देखकर नारा लगाया झंडा हमारा लौटा दो। उस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठी चार्ज की गई जिसमें सात युवकों की गिरफ्तारी भी की गई। इस हंटर बाजी के खिलाफ 13 अगस्त को भूमित्र शर्मा औषधालय में भारत छोड़ो आंदोलन की योजना को लेकर मंत्रणा की गई। शाम में लोग जब सभा के लिए शहीद सराए में एकत्रित हुए तो डा. सरयू प्रसाद गुप्त ने सरकार के खिलाफ घोषणा की। उन्हें लाठियों से पीटा गया। गुस्से से तिलमिलाये मजिस्ट्रेट एससी मिश्र ने फायरिंग का आदेश दे दिया। डीएवी स्कूल का 13 वर्षीय छात्र बच्चन प्रसाद नारे लगाते हुए टौमियों की गोलियों से घायल हो गया। उसकी 16 अगस्त को सिवान सदर अस्पताल में मौत हो गई। उनके साथ ही झगड़ू साह, छट्ठू गिरी, भी शहीद हो गए। रेनुआ के लक्ष्मण सिंह को गोली मार कर उनकी जांघ छलनी कर दी गयी। इस तरह से 1942 की क्रांति में जिले के विद्यानंद दुबे और महादेव स्वराजी समेत कई लोगों को गोलियां लगी थीं।  13 अगस्त की सभा के बाद वहां एकत्र लोगों को हटाने के लिए मजिस्ट्रेट ने लाठी चलाने का आदेश दे दिया। पुलिस की ज्यादती से तंग आकर लोगों ने पुलिस पर रोड़े बरसाने शुरू कर दिए। इससे बिफरी पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलायी। पुलिस की गोली से ढेरों लोगों के साथ डीएवी के छात्र और ठेपहां निवासी बच्चन प्रसाद बुरी तरह से घायल हो गए। उनकी तीन दिनों तक सदर अस्पताल में इलाज के बाद 16 अगस्त को 1942 को मौत हो गई।

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