वित्त एवं निवेश जगत के प्रभावशाली नाम कहने लगें कि भारत में शासन संबंधी स्थितियों को लेकर निराशा का माहौल बन गया है तो पानी किस हद तक गुजरने लगा है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। मशहूर अमेरिकी फर्म जेपी मॉर्गन के एक प्रमुख अधिकारी ने एक इंटरव्यू में यह बेलाग कहा है कि आम तौर पर भारत को लेकर आज छवि नकारात्मक है और निवेशक अब हताश होने लगे हैं। उन्होंने यह बात विदेशी निवेशकों के संदर्भ में कही है, लेकिन भारत में लोगों की राय भी आज इससे बेहतर नहीं है।
अमेरिकी सर्वेक्षण एजेंसी गैलप के ताजा सर्वे के मुताबिक लगभग आधे भारतीय यह मानते हैं कि भ्रष्टाचार पांच साल पहले की तुलना में आज ज्यादा बढ़ा है, 78 प्रतिशत लोगों की राय में सरकार में भ्रष्टाचार व्याप्त है, जबकि 71 प्रतिशत लोगों का मानना है कि व्यापार जगत में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इससे भी ज्यादा चिंता का तथ्य तकरीबन 65 प्रतिशत बेरोजगार लोगों की यह राय है कि सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने के ठोस कदम नहीं उठा रही है। लोग भ्रष्टाचार को लेकर खुद को कितना असहाय महसूस कर रहे हैं और उनमें कैसी छटपटाहट है, इसकी एक मिसाल अप्रैल में दिल्ली में अन्ना हजारे के अनशन के दौरान देखने को मिली थी।
अन्ना के अनशन से एक कारगर लोकपाल की स्थापना की उम्मीद बनी है, लेकिन जमीनी स्तर पर जिस हद तक भ्रष्टाचार फैला हुआ है, उसका क्या हल हो, इस सवाल पर आम लोग से लेकर विशेषज्ञ तक जैसे सूत्रविहीन हो जाते हैं। इस असहायता से ही वह हताशा पैदा हो रही है, जिसका असर अब देश की विकास-कथा पर पड़ने लगा है। हालांकि बीते महीनों में भ्रष्टाचार के मामलों पर न्यायपालिका ने जबरदस्त सख्ती दिखाई है, जिससे जांच में चुस्ती आई है और अनेक मशहूर नाम फिलहाल सीखचों के भीतर कैद हैं, मगर इससे न तो आम आदमी और न ही निवेशकों का भरोसा लौटता दिख रहा है।
अमेरिकी सर्वेक्षण एजेंसी गैलप के ताजा सर्वे के मुताबिक लगभग आधे भारतीय यह मानते हैं कि भ्रष्टाचार पांच साल पहले की तुलना में आज ज्यादा बढ़ा है, 78 प्रतिशत लोगों की राय में सरकार में भ्रष्टाचार व्याप्त है, जबकि 71 प्रतिशत लोगों का मानना है कि व्यापार जगत में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इससे भी ज्यादा चिंता का तथ्य तकरीबन 65 प्रतिशत बेरोजगार लोगों की यह राय है कि सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने के ठोस कदम नहीं उठा रही है। लोग भ्रष्टाचार को लेकर खुद को कितना असहाय महसूस कर रहे हैं और उनमें कैसी छटपटाहट है, इसकी एक मिसाल अप्रैल में दिल्ली में अन्ना हजारे के अनशन के दौरान देखने को मिली थी।
अन्ना के अनशन से एक कारगर लोकपाल की स्थापना की उम्मीद बनी है, लेकिन जमीनी स्तर पर जिस हद तक भ्रष्टाचार फैला हुआ है, उसका क्या हल हो, इस सवाल पर आम लोग से लेकर विशेषज्ञ तक जैसे सूत्रविहीन हो जाते हैं। इस असहायता से ही वह हताशा पैदा हो रही है, जिसका असर अब देश की विकास-कथा पर पड़ने लगा है। हालांकि बीते महीनों में भ्रष्टाचार के मामलों पर न्यायपालिका ने जबरदस्त सख्ती दिखाई है, जिससे जांच में चुस्ती आई है और अनेक मशहूर नाम फिलहाल सीखचों के भीतर कैद हैं, मगर इससे न तो आम आदमी और न ही निवेशकों का भरोसा लौटता दिख रहा है।
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